-By Dr.A.k. Rastogi
भारत में ब्रॉडकास्टिंग बिल क्यों नही लाया जा सका यह तो सरकार के लिए गम्भीर चिंतन का विषय होना चाहिए लेकिन केबल टीवी को ब्राॅडकास्टर का दर्जा ना दिए जाने का यह एक बढ़ा कारण है क्योकि ब्राॅडकास्ट एक्ट ना होने के कारण ब्राॅडकास्ट रेग्यूलेट अथाॅरिटी भी नहीं बनाई जा सकी इसीलिए ट्राई ही केबल टीवी को भी देखती है। ट्राई अर्थात टेलीकाॅम रेग्यूलेटरी अथाॅरिटी ऑफ इंडिया ने ही केबल टीवी को एनालाॅग से डिजीटल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, क्योकि एनालाॅग को डिजीटल किए जाने की आवश्यक्ता को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार ने ही समझा था। मंत्रालय द्वारा सैटेलाईट चैनलों के प्रसारण हेतु बिना किसी हिसाब के अनुमति तो प्रदान की जा रही थीं लेकिन मंत्रालय ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि इतने सारे चैनलों का प्रसारण होगा कैसे क्योंकि केबल टीवी पर प्रसारण क्षमता ही मात्रा 108 चैनलों की ही थी, जबकि अनुमति इससे कहीं अध्कि चैनलों के लिए दी जा चुकी थी। इसका परिणाम यह हुआ कि चैनलों को प्रसारित किए जाने के एवज में कैरिज पफीस प्रचलन में आई। अब चैनलों की प्लेसिंग के लिए भी केबल टीवी ऑपरेटरों को भुगतान किया जाने लगा था क्योंकि केबल टीवी ऑपरेटर के पास 108 चैनलों से ज्यादा चैनल प्रसारण की क्षमता ही नहीं थी। समस्या बहुत गम्भीर थी जिससे ब्राॅडकास्टर्स परेशानी में थे जबकि केबल टीवी ऑपरेटरों को आमदनी का एक बढ़िया रास्ता मिल गया था। चैनल चलाने के लिए सबसे ज्यादा खर्च अब चैनल के डिस्ट्रीब्यूशन पर होने लगा था।
इस प्रकार चैनलों की संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही थी उसी हिसाब से केबल टीवी ऑपरेटरों, एमएसओ के गठबंध्न बनने लगे थे तो भिन्न चैनल्स भी डिस्ट्रब्यूशन के खर्चो को सीमित करने के लिए आपस में बुके बनने लगे। ब्राॅडकास्टर्स से ली जाने वाली राशि इतनी अहम हो गई कि उसके सम्मुख ग्रांउफड उपभोक्ताओं से ली जाने वाली मासिक पफीस भी नगण्य साबित होने लगी, अतः विस्तार का दायरा बढ़ गया, भले ही उपभोक्ता से कोई शुल्क ना मिले लेकिन उन तक पफीड पहुंचनी चाहिए। इस तरह केबल टीवी ग्रांउफड के हालात बद से बदतर होते गए जबकि एमएसओ की पौबारह होती रही या फिर पे चैनलों की चांदी लेकिन एपफटीए चैनलों के लिए बड़ी चुनौती बनती गई। पे चैनलों ने भी आपस में मिलकर स्वयं को सम्भाल लिया लेकिन एपफटीए में अनेक चैनलों को बंद भी हो जाना पड़ा। इसी प्रकार ग्राउंड नेटवर्क में लास्टमाइल केबल टीवी ऑपरेटरों के बीच कांटे की प्रतिस्पर्ध बढ़ी रेट वार हुई जबकि उपभोक्ताओं को इसका लाभ मिला।

हालात जब ज्यादा बिगड़ गए तब चैनलों की प्रसारण क्षमता बढ़ाने के लिए एनालाॅग से डिजीटल पर जाने के लिए कानून बनाए जाने की आवश्यक्ता हुई। यह कानून बनाने का कार्य तत्कालीन भाजपा सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्राी रही श्रीमती सुषमा स्वराज ने सम्भाला। 14 जनवरी 2003 को महामहिम राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर के बाद ब्।ै कानून की अध्सिूचना भी जारी हो गई लेकिन कानून लागू नहीं हो पाया। सरकार बदल गई भाजपा गई कांग्रेस आ गई। कैस मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में और केबल टीवी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से ट्राई के सुपुर्द हो गया। ट्राई ने कैस की जगह डैस किया और लागू हो जाने के बाद न्यू टैरिपफ आर्डर 2 तक बात पहुंच गई है। पूरा सिस्टम ही डिजिटल हो चुका है एलसीओ का नियंत्राण खत्म और एमएसओ प्रफी हो गया जबकि पे चैनलों की चुनौतियां बढ़ गई है, सरकार को अपेक्षित कर प्राप्ती हो रही है लेकिन बेचारा उपभोक्ता ठगा गया, उसे चैनल लेने से पूर्व अपनी जेब देख लेनी पड़ती है।
केबल टीवी अभी भी ब्राॅडकास्ट के अंर्तगत नहीं लाया जा सका है क्योंकि इंडियन टेलीग्रापफ एक्ट 1885 के अंतर्गत उनका पंजीकरण पोस्ट ऑफिस में होता है। उनको कहीं कोई अंडरटेकिंग नहीं देनी होती है उनका कोई स£टपिफकेशन नहीं होता है, उनके लिए ऐसी कोई भी संस्था नहीं है जहां उनके द्वारा की जाने वाली वाइलेशन की शिकायत की जा सके अथवा कार्यवाही की जा सके। वह केबल टीवी सेवा उपलब्ध करवाते हैं इसके लिए उनके द्वार स्वघोषणा करनी होती है उनके उस पंजीकरण में। केबल टीवी ऑपरेटर एक फ्रीक्वेंसी पर सिग्नल उपलब्ध करवाते हैं वह सिग्नल डेटा के रूप में ऑडियो-वीडियो, रेडियों तरंगो का वितरण किया जाता है जोकि ब्राॅडकास्ट कहलाता है परंतु केबल टीवी ब्राॅडकास्ट में नहीं है।
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