पिछले वर्ष अक्टूबर के महीने में सामने आए टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट (टीआरपी) घोटाले ने न्यूज़ चैनल्स की विश्वसनीयता पर एक प्रश्न चिन्ह लगा दिया, लेकिन उसके बाद से इस मामले में हो रही गिरफ्तारियां और नए-नए खुलासों ने ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च कॉउंसिल (बार्क) इंडिया पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। इस मामले में ताज़ा विषय जो चर्चा में बना हुआ है, उसमें व्हाट्सऐप चैट लीक का मामला सामने आ रहा है। इसमें एक निजी चैनल की तरफ से बार्क इंडिया के उच्च पदों पर विराजमान अधिकारियों को फायदा पहुंचाकर के टीआरपी रेटिंग को अपनी ओर करने का काम किया गया। ऐसा व्हाट्सऐप चैट से लगता है। हालांकि, अभी इस मामले में जांच चल रही है और पुलिस द्वारा एकत्रित किए गए सबूतों का अदालत में परिक्षण किया जाना बाकी है। लेकिन व्हाट्सऐप की सामने आई चैट को अगर आधार माने तो यह साफ़ जाहिर है कि, कैसे कोई न्यूज़ चैनल सत्ता में काबिज सरकार में अपनी पहुंच होने का फायदा उठाकर के खुद को नंबर वन दिखा सकता है। अब यहां पर एक सवाल यह भी है कि, अगर वह चैनल सत्ता में अपनी पहुंच का फायदा उठाकर के खुद को नंबर वन दिखा रहा है तो वो अपनी ख़बरों में भी वो किस प्रकार हेर फेर करके दर्शकों तक पहुंचाता होगा। वैसे अभी इतनी जल्दी चैनल को लेकर के कोई राय बनानी जल्दबाज़ी ही होगी। क्योंकि मामले की जांच अभी भी जारी है। हो सकता है कि भविष्य में इस विषय को लेकर के और भी गंभीर खुलासे हो, लेकिन इस मामले में इस व्हाट्सऐप चैट के कांड ने चैनल को संदेह के घेरे में जरूर ला दिया है। बता दें कि, टीआरपी घोटाले में एक और बड़े न्यूज़ चैनल के भी अधिकारियों को भी पूछताछ के लिए पुलिस ने तलब किया और यह वो चैनल है, जिसने एक लम्बे समय तक टीआरपी की रेस में खुद को नंबर वन रखा।
कथित टीआरपी घोटाले में आरोप लग रहा है कि, बार्क के उच्च पद पर उस समय विराजमान अधिकारियों ने एक खास चैनल को फायदा पहुँचाने के लिए उसकी टीआरपी रेटिंग को बढ़ा दिया। अब यह तो साफ़ है कि, अगर एक खास चैनल की टीआरपी को बढ़ाया गया तो अन्य चैनलों की टीआरपी को घटाया गया होगा। मतलब बार्क के अधिकारियों ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए ना सिर्फ विज्ञापनदाताओं व अन्य चैनलों के साथ धोखा किया बल्कि दर्शकों को भी अंधेरे में रखा जो एक ऐसे चैनल को नंबर वन समझ रहें थे जो कि नंबर वन कभी था ही नहीं।
टीआरपी रेटिंग से क्या होता है ? यह बताती है कि कौनसा चैनल है जो दर्शकों द्वारा अधिक देखा जा रहा है या फिर वह कौनसा प्रोग्राम है जो अधिक दर्शकों को अपनी ओर खींच रहा है। इस हिसाब से फिर विज्ञापनदाता यह तय करते है कि उन्हें अपने विज्ञापनों को कहाँ पर किस रेट पर दिखाना है। मतलब अगर कहें कि इस टीआरपी के हेर फेर की वजह से कई चैनलों को वित्तीय नुकसान भी हुआ होगा तो गलत नहीं होगा।
टीआरपी घोटाले के सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने भी मामले की समीक्षा के लिए चार सदस्यीय एक कमेटी का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता पब्लिक ब्रॉडकास्टर प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वेम्पत्ति कर रहे हैं। अभी हाल ही में कमेटी ने अपने सुझाव में कहा कि, टेलीविज़न रेटिंग में और भी पारदर्शिता की जरुरत है। इसके अलावा कमेटी ने कहा कि, टेलीविज़न रेटिंग के लिए सैंपल साइज को बढ़ाने की जरुरत है और इस सैंपल साइज में ग्रामीण इलाकों को भी शामिल करने की जरुरत है। समिति ने सैंपल साइज में 5 लाख घरों तक पहुँचने का सुझाव दिया है। आपको बता दें कि अभी सैंपल साइज में 50 हज़ार घरों को ही शामिल किया जाता हैं।
इस कथित टीआरपी घोटाले ने मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। दर्शकों और विज्ञापनदाताओं का खोया हुआ हुआ विश्वास एक बार फिर से वापस आए, इसके लिए जरुरी है कि मामले की जल्दी-से-जल्दी और निष्पक्ष जांच पूरी हो। कथित टीआरपी घोटाला, जिसकी अभी जांच चल रही है। अगर इसमें हेर फेर हुई है तो यह विज्ञापनदाता और दर्शकों के साथ एक तरह का धोखा है।
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